रेहाना सुल्तान | एक दास्तां | मैंने इतने नंगे मर्द देखे हैं कि मुझे अब कपड़े पहने…

रेहाना सुल्तान | “मैंने इतने नंगे मर्द देखे हैं कि मुझे अब कपड़े पहने हुए पुरुषों से नफ़रत होने लगी है।” एक दास्तां,  साल 1970 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘चेतना’ में कम उम्र की एक यौनकर्मी अपने एक ग्राहक से ये कहती है।

कम उम्र की उस यौनकर्मी की भूमिका रेहाना सुल्तान ने अदा की थी। तब वे सिर्फ़ 20 साल की थीं और पुणे फ़िल्म इंस्टीच्यूट से पास होकर कुछ दिन पहले ही निकली थीं। फ़िल्म के इस दृश्य में वे बिस्तर पर लाल साड़ी में लिपटी बैठी हैं और व्हिस्की की एक बोतल हाथ में लिए हुए हैं। वे हिचक रहे ग्राहक को बिस्तर पर आने के लिए उकसाने की कोशिश कर रही हैं।

उन्होंने एक पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा था, “मुझे जो डायलॉग दिए जाते थे, वे बोल्ड नहीं, अश्लील होते थे। मै इनसे परेशान हो गई थी।” रेहाना सुल्तान अधिकतर स्क्रिप्ट इनकार कर देती थीं। वे उसके बाद एक दशक तक ऐसी भूमिकाएं करती रहीं जिसकी कोई चर्चा नहीं होती थी। निर्देशक इशारा से 1984 में शादी के बाद वो धीरे धीरे गायब हो गईं।

उन्होंने कहा, “मैं टाइप्ड होकर रह गई। दर्शकों को लगता था कि मैं सेक्सुअलिटी का दूसरा नाम हूँ। मुझे इससे चिढ़ होती थी। मेरे पास निर्माता बारिश के दृश्य, बाथटब के दृश्य लेकर ही आते थे।” वे आगे कहती हैं, “मैं उनसे पूछती थी कि भारत के कितने घरों में बाथटब हैं? यह सच्चाई से परे था। मैंने ढेर सारी भूमिकाएं छोड़ दीं। मुझे कुछ ही दिलचस्प भूमिकाएं मिलीं।”

"मैंने इतने नंगे मर्द देखे हैं कि मुझे अब कपड़े पहने हुए पुरुषों से नफ़रत होने लगी है।" एक दास्तां

सुल्तान बिस्तर पर खड़ी होती हैं तो उनके कपड़े नीचे गिरते हैं। हेयरड्रेसर ने उन्हें काफ़ी बड़ा विग लगा दिया था। इसलिए उनके शरीर का ऊपरी हिस्सा लंबे बालों से ढंक जाता है। रेहाना सुल्तान ‘टाइप्ड’ होकर रह गईं, सेक्सी छवि की वजह से उनकी प्रतिभा का सही मूल्यांकन नहीं हो पाया। उसके बाद कैमरे में उनकी टांगें अंग्रेज़ी के ‘वी’ अक्षर के आकार में दिखती हैं। यह दृश्य फ़िल्म पोस्टर के मामले में सालों तक चर्चा में बना रहा। यह बात 1970 की है।

उस समय बॉलीवुड नाच-गानों के लिए जाना जाता था। फ़िल्म निर्देशक श्याम बेनेगल के मुताबिक़, हीरोइनों से ‘पवित्र और कुमारी’ होने की उम्मीद की जाती थी। ‘चेतना’ यौनकर्मियों के पुनर्वास पर आधारित फ़िल्म थी। इसके निर्देशक बाबू राम इशारा ने इसके ज़रिए भारत को झकझोर कर रख दिया था।

एक फ़िल्म आलोचक ने लिखा था, “रेहाना सुल्तान ने उच्च वर्ग की ढंकी छिपी वेश्या का ज़बरदस्त रोल कर सबको सन्न कर दिया था।” वे उन अभिनेत्रियों की अगुआ थीं, जिन्होंने दमदार औरतों और यौन क्रांति की छवि का निर्माण किया था।

"मैंने इतने नंगे मर्द देखे हैं कि मुझे अब कपड़े पहने हुए पुरुषों से नफ़रत होने लगी है।" एक दास्तां

सुल्तान का कहना है कि उन्हें फ़िल्मों में लौटना अच्छा लगेगा। एक दूसरे आलोचक ने कहा, “सुल्तान ने गंदी भाषा बोलने वाली एक कॉल गर्ल की भूमिका स्वीकार कर फ़िल्म उद्योग की सभी परंपराओं को तोड़ दिया था।”

कुछ दिनों बाद लोग फ़िल्म भूल गए। लेकिन इलाहाबाद में इलेक्ट्रॉनिक सामान बेचने वाले एक साधारण आदमी की इस बेटी को नहीं भूल सके जिसने बॉलीवुड में एक ‘नई और बोल्ड’ शुरुआत की थी। उसी साल के अंत तक रेहाना सुल्तान की एक और फ़िल्म सिनेमाघरों तक पंहुच गई। फ़िल्म ‘दस्तक’ के निर्देशक उर्दू लेखक राजिंदर सिंह बेदी थे।

"मैंने इतने नंगे मर्द देखे हैं कि मुझे अब कपड़े पहने हुए पुरुषों से नफ़रत होने लगी है।" एक दास्तां

इस फ़िल्म की कहानी एक ऐसे नव विवाहित जोड़े की थी, जो अनजाने में मुंबई के एक वेश्यालय में एक ऐसा फ्लैट भाड़े पर ले लेता है, जहां पहले एक नाचने वाली एक लड़की रहती थी। रेहाना सुल्तान ने उस पत्नी की भूमिका की थी, जो फ़्लैट में अकेले रहती थी और उसका पति अपने काम पर बाहर रहता था। उस नाचने वाली लड़की के पूर्व ग्राहक कभी भी किसी समय उनके दरवाजे पर दस्तक देने लगते थे।

इस फ़िल्म के पोस्टर में सुल्तान को फ़र्श पर ‘नंगी’ सोई दिखाया गया था। सच तो यह है कि यह फ़िल्म कामुक या फूहड़ बिल्कुल नहीं थी। पर सुल्तान की एक छवि बन गई थी। शुरू में सुल्तान को मायानगरी ने हाथों हाथ लिया। समीक्षकों ने उन्हें नई किस्म की फ़िल्मों की ‘मौलिक सुपर स्टार’ क़रार दिया था। उनकी भूमिका को निर्देशक सत्यजित रॉय ने काफ़ी सराहा था।

उन्हें ‘दस्तक’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला था। इस फ़िल्म की शूटिंग पहले शुरू हुई थी, हालांकि यह ‘चेतना’ के बाद रिलीज़ हुई थी। लेकिन चर्चा उनके ‘गर्म दृश्यों’ को लेकर ही होती थी। फ़िल्म समीक्षक फ़िरोज़ रंगूनवाला लिखते हैं, “उन दृश्यों से यह तो साफ़ हो गया कि भारतीय सिनेमा आख़िरकार बालिग हो गया।”

पर वे यह बड़ी आसानी से भूल जाते हैं कि रेहाना सुल्तान ने अपनी पहली ही फ़िल्म में राष्ट्रीय पुरस्कार जीत लिया था। रेहाना सुल्तान के पास इस तरह के बोल्ड दृश्य वाली भूमिकाओं की बाढ़ सी आ गई। उनके पास फ़िल्म निर्माता ‘बारिश में भींगने के दृश्य’ की भूमिकाएं ले कर आते थे।

अब 68 साल की हो चुकी सुल्तान कहती हैं, “मैंने भी ग़लतियां की थीं। मैंने ग़लत फ़िल्में चुनी थीं। लोगों ने मुझे वहीं छोड़ दिया। वे मेरा स्वागत अभी भी कर सकते हैं।”

6 साल पहले अपनी एक फ़िल्म में सुल्तान को छोटी भूमिका देने वाले सुधीर मिश्र कहते हैं, “वे कई मामलों में अग्रणी थीं। वे पेशेवर रूप से प्रशिक्षित अभिनेत्री थीं। वे अपने समय से काफ़ी आगे थीं।” वे आगे जोड़ते हैं। “यह दुखद है कि उन्हें बिल्कुल भुला दिया गया है। यह बताता है कि हम किस तरह लोगों को टाइपकास्ट कर देते हैं और इतिहास मिटा देते हैं।”

सुल्तान ने सिर्फ़ 18 साल की उम्र में फ़िल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीच्यूट ऑफ़ इंडिया में दाख़िला लिया था। चकाचौंध रोशनियों से दूर, सुल्तान स्टूडियो लौटने के लिए आतुर हैं और कहती हैं कि वो काम करने को तैयार हैं।

वो कहती हैं, “एक्टिंग को लेकर हर चीज़ की कमी खलती है। कैमरा, वो माहौल। पता नहीं मैंने अभिनय क्यों छोड़ दिया। मैं फिर से एक्टिंग करना चाहती हूं। लेकिन क्या कोई अब मुझे लेगा?”

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