दोस्ती 1964 से लेकर 2018 की वीरे दी वेडिंग तक फ्रैंडशिप , मास्टरबेशन तक जा पहुंची
फ्रैंडशिप डे स्पेशल
दोस्ती 1964 से लेकर 2018 की वीरे दी वेडिंग तक फ्रैंडशिप , मास्टरबेशन तक जा पहुंची, बॉलीवुड और दोस्ती ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू नज़र आते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले की फिल्मों की दोस्ती एक मिसाल के तौर पर देखी जाती थी और उसमें सौम्यता होती थी जबकि आज की फिल्मों में दोस्ती तो है लेकिन गंभीरता वाली बात नहीं दिखाई देती।
पहले दोस्ती की फिल्में पूरा परिवार एक साथ बैठ कर देख सकता था लेकिन आज जिस तरह की दोस्ती की फिल्में बन रही हैं उसे पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखने में शर्म आती है। हम आज ऐसी ही कुछ फिल्मों की बात करेंगे और बताएंगे कि दशक बीतने के साथ कैसे दोस्ती की फिल्मों के अंदाज़ में बदलाव आया। कैसे दोस्ती पर बनने वाली साफ सुथरी फिल्मों की जगह दोस्ती पर बनने वाली अश्लील फिल्मों ने ले ली।
साल 1964 फिल्म आई दोस्ती, इस ब्लैक एंड व्हाइट फिल्म में रामू और मोहन की दोस्ती है। दोनों ही अपंग हैं। लेकिन दोस्त मिलने के बाद अपनी काबिलियत को जानते हैं और साथ मिलकर गाने गाकर अपना गुजारा करते हैं। इस फिल्म में एक-दूसरे के लिए किए गए त्याग को बताया गया है।
बात करें साल 1971 की तो इस साल भी ज़बरदस्त फिल्म आई आनंद, जिसने उस दौर के दो दो सुपरस्टार की दोस्ती पर्दे पर दिखाई। बाबू मोशाय को आज भी लोग याद करते हैं। आनंद की कहानी अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना की दोस्ती पर है जिसमें राजेश खन्ना मरते हुए भी अमिताभ को जिंदगी जीना सिखा देते हैं। बहुत ही कम समय की दोस्ती में भी फिल्म ने हम सभी को दोस्ती और जिंदगी की अहमियत बताई थी।
लेकिन ऐसा नहीं था कि दोस्ती सिर्फ इंसानों के दरमियां ही हो सकती है। जानवरों से भी इस दोस्ती को दिखाया जा सकता है। इसी कॉन्सेप्ट को लेकर 1971 में ही आई फिल्म हाथी मेरे साथी।
राजेश खन्ना की इस फिल्म की सबसे खास बात यह थी कि इसमें इंसान की नहीं, बल्कि जानवरों से प्यार और दोस्ती को दर्शाया गया है। 4 हाथियों से राजू का प्रेम किसी इंसान से भी ज्यादा गहरा था और प्यारे हाथी भी अपनी दोस्ती बखूबी निभाते हैं।
फिर 1975 में आई फिल्म शोले। शोले अब तक की सबसे ज्यादा देखी जाने वाली फिल्मों में से एक है। आज भी लोग दोस्ती को जय और वीरू की जोड़ी के नाम से ही जानते हैं। जिंदगी के हर मोड़ पर साथ देने वाले जय और वीरू का गाना ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे…’ अब तक का सबसे फेमस गाना है।
दशक बदला। 80 का दशक आया औऱ साल 1981 में फिल्म आई याराना। फिल्म याराना का गाना ‘तेरे जैसा यार कहां…’ लोगों की आंखों में आंसू ले ही आता है। फिल्म में बिशन अपने बचपन के दोस्त किशन को बड़ा सिंगर बनने में मदद करता है। और किशन भी इस एहसान के बदले अपने दोस्त को मुसीबत से बचाता है।
80 से 90 के दशक के बीच फ्रैंडशिप थोड़ा उपेक्षित रही और फिर 90 के दशक में साल 1994 में अंदाज अपना-अपना आई। अमर और प्रेम की दोस्ती और चुलबुलेपन के लोग आज भी दीवाने हैं। उनकी मासूम लेकिन मजेदार हरकतों ने सभी को गुदगुदाया है। इस कॉमेडी फिल्म में अमर और प्रेम अपने प्यार को पाने के लिए एक-दूसरे की मदद करते हैं।
फिर 1999 में रॉकफोर्ड आई। इस फिल्म को बहुत ही कम लोगों ने देखा होगा, लेकिन इस फिल्म में शंकर एहसान लॉय के गाने बहूत प्रचलित हुए थे। फिल्म में एक टीचर और स्टूडेंट की दोस्ती दिखाई गई है और ये समझाया गया है कि दोस्ती उम्र की मोहताज नहीं। ‘यारों दोस्ती बड़ी ही हसीं है…’ गाना कॉलेज के स्टूडेंट्स में बहुत लोकप्रिय है।
21वीं सदी में यानि साल 2001 में दिल चाहता है धूम मचा दी। देखा जाए तो इसी फिल्म से फ्रैंडशिप जैसे पवित्र रिश्तों में अश्लीलता घुलने लगी थी। हलांकि तब भी फिल्म परिवार के साथ देखी जा सकती थी। इतनी गुंजाइश बनी हुई थी।
आमिर खान, सैफ अली खान और अक्षय खन्ना की इस फिल्म में दोस्ती के बहुत महत्वपूर्ण पहलुओं को दिखाया है। इन 3 युवा दोस्तों की कहानी में दोस्ती में हुई गलतफहमियां और एक-दूसरे के प्रति प्यार को इस फिल्म में बहुत ही बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया है जिसके लिए 2001 में इस फिल्म को बेस्ट फीचर फिल्म इन हिन्दी के लिए नेशनल फिल्म अवॉर्ड भी मिला था।
2003 में मुन्ना भाई एमबीबीएस ने तो धमाल मचा दिया। मुन्ना और सर्किट की फ्रैंडशिप आज भी लोगों की जुबां पर है। दोस्त की बेहद इज्जत और हर काम, हर मुसीबत व हर खुशी में दोस्त का साथ देना कोई सर्किट से सीखे। इस ना जाने कितने जोक्स बने और आज भी बन रहे हैं। ये एक मासूम फ्रैंडशिप की कहानी थी।
रंग दे बसंती जो 2006 में आई। इस फिल्म में फ्रैंडशिप और देशप्रेम को मिलाया गया है। शहीद हो चुके अपने दोस्त को न्याय दिलाने के लिए कैसे ये सभी दोस्त अपनी जान की परवाह किए बिना लड़ते हैं, यह देखना काबिले तारीफ है। फिल्म 26 जनवरी 2006 को रिलीज हुई थी और सफल रह थी।
2008 में रॉक ऑन आई। 4 दोस्तों की इस कहानी में दोस्तों में प्यार, तकरार सब है। एक बैंड बनाने को लेकर चारों दोस्त अपनी नौकरी और काम से समय निकालकर म्यूजिक को अपनी जिंदगी बनाते हैं लेकिन परिवार और गलतफहमियों के चलते अलग हो जाते हैं। लेकिन दोस्तों का साथ ही उन्हें अपने जिंदगी के पैशन से मिलाता है। फरहान अख्तर, अर्जुन रामपाल जैसे एक्टर्स इस फिल्म को और खूबसूरत बनाते हैं।
थ्री इडियट्स जो साल 2009 में रिलीज़ हुई। थ्री इडियट्स फिल्म ने कई रिकॉर्ड्स तोड़े। साथ ही फिल्म में पढ़ाई, जिंदगी और दोस्ती से संबंधित बातों को बेहतरीन तरीके से दर्शाया गया था। रेंचो अपने दोस्तों राजू और फरहान को जिंदगी जीना समझाता है और रेंचो के गायब होने के बाद फरहान और राजू अपने दोस्त को ढूंढने निकलते हैं। आमिर खान, आर. माधवन, करीना कपूर और शरमन जोशी की इस फिल्म को लोग आज भी उतने ही उत्साह और उमंग के साथ देखते हैं।
जिंदगी ना मिलेगी दोबारा 2011 में आई। इस फिल्म में तीन दोस्तों की कहानी है, जो कॉलेज में बहुत खास हुआ करते थे लेकिन कुछ गलतफहमियों की वजह से अलग हो गए थे। अपने एक दोस्त की बैचलर ट्रिप पर फिर तीनों मिलते हैं और उनकी जिंदगी बदल जाती है। फिल्म में दोस्ती को जिंदगी के पहलुओं से जोड़ा गया।
इसी साल साड्डा अड्डा भी रिलीज़ हुई। इस फिल्म को बहुत कम लोगों ने देखा होगा लेकिन जिसने भी यह फिल्म देखी है, वो इस फिल्म की तारीफ किए बिना नहीं रह पाया है। इसमें 5 युवा दोस्तों की कहानी है, जो जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते हैं। एक दोस्त अपने सपने को नहीं पा सका और जिंदगी खत्म कर बैठा। इस घटना ने बाकी 4 दोस्तों को जीवन जीने और मेहनत करने के लिए प्रेरित किया।
2011 में ही आई प्यार का पंचनामा। इस फिल्म में भी दोस्ती थी लेकिन दोस्तों के साथ अश्लीलता भी थी। कम से कम आप इस फिल्म को फैमिली के साथ बैठ कर नहीं देख सकते। लेकिन फिल्म हिट रही और इसकी सीक्वल बनी प्यार का पंचनामा पार्ट 2। दूसरे भाग में भी जमकर गालियां और अश्लील बातें परोसी गई। जो कम से कम दोस्ती जैसे रिश्ते को दागदार करते नज़र आईं।
साल 2018 में रही सही कसर वीरे दी वेडिंग ने पूरी कर दी। फ्रैंडशिप की बात की जाए तो ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में लड़के ही दोस्त के रूप में दिखाए गए हैं, महिलाओं या लड़कियों की फ्रैंडशिप पर फिल्में नहीं के बराबर बनी हैं। इस कमी को पूरा करती है 2018 में रिलीज हुई ‘वीरे दी वेडिंग’।
करीना कपूर खान, सोनम कपूर, शिखा तलसानिया और स्वरा भास्कर ने लीड रोल निभाए थे। इस फिल्म को भी परिवार के साथ देखने की भूल नहीं करने लायक है। दोस्ती के नाम पर मास्टरबेशन का घटिया मसाला पेश कर दिया गया है।
सबको पता है कि शादी क्यों होती है। लेकिन ऐसा नहीं कि उसके पम्पलेट छपवा कर बंटवा दिए जाएं कि अमुक काम के लिए शादी का आयोजन है। दोस्ती में अब फूहड़ता मिक्स हो चुकी है। वो दौर भूल जाइये जब आपने दोस्ती, शोले, याराना जैसी फिल्में देखी थीं। अब दोस्ती के नाम पर वैचारिक मास्टरबेशन है। जो थोड़ी देर के लिए आनंद तो देगा लेकिन यादगार नहीं रह जाएगा।
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