ज़िंदगी में असफलता और सफलता कभी भी स्थाई नहीं होते | अज़ीम शेख़
अभिनेता अज़ीम शेख़ अपने सशक्त अभिनय के बलबूते अभिनय जगत में एक खास पहचान बना चुके हैं और लगातार दर्शकों का दिल जीत रहे हैं।सोनी चैनल पर प्रसारित क्राइम पेट्रोल और पटियाला बेब्स में निभाई गई भूमिकाओं से उन्हें घर घर में पहचान मिली है। प्रस्तुत है अज़ीम शेख़ की पृष्ठभूमि, अभिनय यात्रा में आए उतार चढ़ाव और उनके अपकमिंग प्रोजेक्ट से संबंधित खास बातचीत ।
गॉसिपगंज – अभिनय के क्षेत्र में कैसे आना हुआ आपका ?
अज़ीम शेख़ – मैं नॉन फिल्मी बैकग्राउंड से हूं लेकिन मुझे अभिनय का शौक बचपन से रहा है। जिस तरह लोग बाथरूम सिंगर होते हैं, मैं बाथरूम एक्टर था। मेरे लिए अभिनय अपनी आंतरिक खोज और सामर्थ्य को व्यक्त करने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। यही वजह थी कि समय के साथ अभिनय में मेरी रुचि गहरी होती चली गई फिर बाद में मैंने नुक्कड़ नाटक और रंगमंच पर विशेष ध्यान देना शुरू किया और साथ ही साथ अपनी पढ़ाई भी करता रहा। पैरेंट्स चाहते थे कि मैं अपना भविष्य सुरक्षित करुं उनकी शर्त थी कि पहले पढ़ाई करो और बाकी सब बाद में। इस दौरान फिल्म इंडस्ट्री पर भी रिसर्च और होमवर्क करता रहा जिसके आधार पर अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं अभिनय करने के लिए मुंबई आ गया।
गॉसिपगंज – मुंबई के बारे में अक्सर कहा जाता है कि ये शहर आसानी से किसी को नहीं अपनाता। बहुत संघर्ष करना पड़ता है। आपका कैसा अनुभव रहा?
अज़ीम शेख़ – मेरा अनुभव भी संघर्ष भरा ही रहा है।एक अच्छे रोल के लिए मैंने सालों तक कई प्रोडक्शन हाउस और स्टूडियो के चक्कर काटे हैं। इंडस्ट्री में हाथ पांव मारते हुए मुझे महसूस हुआ कि मेरा कोई गॉडफादर नहीं है जो मेरी हेल्प कर सके इसलिए मन में आशंका रहती थी। लेकिन मैंने कई महान अभिनेताओं के बारे में सुन रखा था कि कैसे वो अपनी मेहनत के बलबूते आगे बढ़े और अपने देश का नाम रोशन किया। मेरे पास अनुभव की कमी थी लेकिन मैं ये जनता था कि अच्छा अभिनेता ही हमेशा आगे बढ़ता है।
मेरे पास सिर्फ मेरा अभिनय था। मुझमें टैलेंट तो था लेकिन उसे तराशने के लिए मैंने बकायदा प्रोफेशनल ट्रेनिंग भी ली, हजारों ऑडिशन दिए और कई बार रिजेक्ट भी हुआ। कुछ फिल्मों में काम किया तो निर्माता उसे रिलीज़ नहीं कर पाए। कुछ फिल्में बंद हो गई तो कहीं रोल पर कैंची चल गई। मुंबई आकर मैंने खुद को बहुत एक्सप्लोर किया। मैं स्वभाव से स्वाभिमानी हूं। मैं सभी का सम्मान करता हूं लेकिन चापलूसी नहीं होती मुझसे। किसी का सम्मान करने और चापलूसी करने में बहुत फर्क होता है। मैंने मेहनत करते हुए ईमानदारी का सीधा रास्ता चुना।
परिस्थितियां अनुकूल नहीं थीं। बार बार मायूस हुआ लेकिन हर बार हिम्मत जुटा कर मेहनत करता रहा। धीरे-धीरे मेरे अभिनय में परिपक्वता आई। मेरी मेहनत और लगन देख कर इंडस्ट्री ने मुझे मौके दिए। मैं एक भरोसेमंद एक्टर साबित हुआ। क्राइम पेट्रोल, सावधान इंडिया, देवों के देव महादेव, महिमा शनिदेव की, गणेश लीला, क्राइम अलर्ट, अदालत, CID, आहट , शपथ , हाउंटेड नाइट जैसे शोज़ में कई सारी महत्वपूर्ण भूमिकाएं करके एक एक्टर के तौर पर खुद की पहचान बना सका।
लोगों ने मुझे नोटिस किया और मेरे अभिनय को सराहा। संघर्ष के कड़वे-मीठे अनुभवों ने एक बेहतर एक्टर बनने में मेरी बहुत मदद की। मेरा मानना है कि हर व्यक्ति को अलग अलग तरह का संघर्ष अलग अलग स्तर पर करना पड़ता है जो जिंदगी भर चलता है और जिंदगी का दूसरा नाम ही संघर्ष है।
गॉसिपगंज – कैरियर में अब तक के काम से आप कितना संतुष्ट हैं?
अज़ीम शेख़ – सच कहूं तो इसका जवाब थोड़ा मुश्किल है। मेरे केस में संतुष्ट या असंतुष्ट होना हर दिन बदलता रहता है।जब कभी कोई रोल अच्छी तरह से निभा लेता हूं तो सिर्फ उस दिन के लिए मैं संतुष्ट रहता हूं। लेकिन अगले दिन से फिर मनचाहा शॉट न हो पाने से या किसी और दूसरी वजह से मैं असंतुष्ट हो जाता हूं। बहुत मिला जुला सा अनुभव होता है मेरा।
ये एक जैसा तो कभी नहीं रहता। मैं संतुष्ट हूं कि अब तक मैने जो भी काम किया मेहनत और ईमानदारी से किया है लेकिन अभी कुछ और भी बेहतर काम करने को लेकर बहुत सा असंतोष भरा पड़ा है मुझमें। एक अभिनेता होने के नाते संतुष्ट तो मैं ज़िंदगी भर नहीं हो सकूंगा। ये असंतोष की भावना मेरे लिए फायदे मंद है। इससे ही मेरे अंदर का अभिनेता लंबे समय तक ज़िंदा रहेगा।
गॉसिपगंज – आपके लिए सफलता और असफलता के क्या मायने हैं?
अज़ीम शेख़ – जिंदगी में असफलता और सफलता कभी भी स्थाई नहीं होते। मैं जिस तरह की फैमिली से बिलॉन्ग करता हूं वहां आज भी एक्टिंग के करियर को एक अलग चश्मे से देखा जाता है। हमारी मिडिल क्लास वाली सोसायटी में 25-30 हज़ार सैलरी की जॉब करने वाला एक इंसान ज़्यादा सफल समझा जाता है। असफलता और सफलता का जो कांसेप्ट है वो हर किसी के लिए अलग अलग है।
मैं खुद को सफल मानता हूं क्योंकि अपनी मेहनत से मैं अपनी आजीविका चला पा रहा हूं। लेकिन अभी और भी सफलता के आयाम हैं जिन्हे पार करना बाक़ी है। पहली सफलता मिलने के बाद आप दूसरी सफलता के लिए प्रयास करते हैं उसके बाद तीसरी, फिर चौथी..। मुझे लगातार अपनी पसंद का काम मिल रहा है। लगातार काम करने से मुझे खुशी मिलती है। खुश रहना ही मेरे लिए बड़ी सफलता है।
गॉसिपगंज – क्या वजह है कि आप अभी तक सिर्फ नेगेटिव रोल में ही नज़र आते हैं?
अज़ीम शेख़ – ऐसा नहीं है कि मैंने सिर्फ नेगेटिव रोल ही किए हैं। मैंने अपनी शुरुआत ही दूरदर्शन के शो पीहर के पॉजिटिव रोल से की थी। मेरे द्वारा निभाए गए फ़िल्म ‘मनी’ के शान मोहम्मद और ‘पटियाला बेब्स’ शो के मुन्ना जैसे कैरेक्टर भी पूरी तरह पॉजिटिव ही थे जिन्हें लोगों ने काफी सराहा। इनके अलावा मैंने और भी बहुत से पॉजिटिव रोल किए हैं। मैंने अलग अलग तरह की भूमिकाएं की हैं।
गॉसिपगंज – लेकिन ज़्यादातर आपकी नेगेटिव भूमिकाएं ही चर्चा में होती हैं फिर चाहे वो आपके द्वारा निभाई गईं क्राइम पेट्रोल की भूमिकाएं हो या दूसरे क्राइम बेस्ड शोज़ के रोल ही क्यों न हो। क्या आप नेगेटिव रोल करने में ज़्यादा कंफर्ट महसूस करते हैं?
अज़ीम शेख़ – जब पहली बार मुझे क्राइम पेट्रोल के प्रियदर्शिनी मट्टू मर्डर केस की स्टोरी में काम मिला था तो वो बहुत छोटा सा निगेटिव रोल था। उस वक्त मेरे दिमाग़ में बस एक ही बात थी कि अच्छे से परफॉर्म करना है। मैं कभी ये नहीं सोचता की नेगेटिव रोल ही करना है या पॉजिटिव रोल ही करना है। फिलहाल ये मेरे हाथ में नहीं है।
मुझसे कौन सा रोल करवाना है या किस तरह के रोल में मैं फिट हूं , इसका फैसला शो के डायरेक्टर, क्रिएटिव और कास्टिंग टीम मिलकर करते है। मुझे लगता है नेगेटिव चीज़ जल्दी चर्चा में आ जाती है इसलिए शायद मेरे नेगेटिव रोल ज़्यादा चर्चित हुए हों। मैं ऐसे रोल करने में कंफर्ट फील करता हूं जिसमें एक्टिंग का स्कोप हो, करने के लिए कुछ हो, चाहे पॉजिटिव हो या नेगेटिव हो, मुझे फर्क नहीं पड़ता। मेरे लिए अच्छा परफॉर्म करना ज़्यादा ज़रूरी है।
मैंने पॉजिटिव, निगेटिव, ग्रे शेड, विक्टिम, कल्प्रिट, सस्पेक्ट हर तरह के किरदार निभाये हैं।कुछ दर्शक मुझे पॉजिटिव रोल में देखना पसंद करते हैं कुछ निगेटिव में। दर्शकों की पसंद पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है। मैं दर्शन सर, मृत्युंजय सर,और कृष सर जैसे उम्दा निर्देशकों का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मुझे लगातार महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए चुना।
गॉसिपगंज – आप डेली सोप में बहुत कम दिखाई देते हैं? क्या सिर्फ़ क्राइम शो में ही काम करते रहेंगे?
अज़ीम शेख़ – बतौर एक्टर मैं तो चाहता हूं कि अच्छी कहानियों का हिस्सा बनूं। रोल को लेकर मैं थोड़ा सा अवेयर रहता हूं। क्राइम बेस्ड शो का फॉर्मेट ऐसा होता है जहां कहानी में हर किरदार को निर्देशक और लेखक के द्वारा पूरी अहमियत दी जाती है।प्रॉपर कैरेक्टर ब्रीफ के साथ शूटिंग से पहले वर्कशॉप भी अरेंज की जाती हैं। 3-4 दिन में एक एपिसोड की शूटिंग कंप्लीट हो जाती है।
जो एक मिनी फ़िल्म की तरह होती है। उसके बाद अगली कहानी और नये किरदार की तैयारियां शुरू हो जाती है। ख़ास बात ये है कि क्रिएटिव सेटिस्फेक्शन के साथ साथ वैरायटी ऑफ रोल्स निभाने के मौके मिलते हैं। डेली सोप में भी कभी कभार अगर कोई अच्छा रोल ऑफर होता है तो ज़रूर करता हूं। मेरी कोशिश तो यही है कि मैं मीनिंगफुल काम करूं और हर वर्ग के दर्शकों से जुड़ सकूं।
गॉसिपगंज – आपकी वेब फ़िल्म ‘मनी’ और हाल ही में आई ‘शिकार’ के काफी चर्चे रहे।भविष्य में ऐसी फिल्मों को लेकर क्या संभावनाएं दिखती हैं।
अज़ीम शेख़ – मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि हम आज ऐसा दौर देख रहे हैं जहां हमारे पास एक दूसरा प्लेटफार्म भी है। सिर्फ थिएटर रिलीज नहीं ओटीटी भी है। अब कम रिस्क में ज़्यादा प्रयोग किए जा सकते हैं। शिकार और मनी जैसे प्रोजेक्ट का आना भी ओटीटी की वजह से ही संभव हो पाया। ‘मनी’ अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई है जो यूके और यूएसए में बेहतरीन प्रदर्शन कर रही है। वहीं दूसरी तरफ शिकार को भी काफी सराहना मिली है।
जो कहानी आप बड़े पर्दे पर नहीं दिखा सकते उसे दूसरे माध्यम से दिखा सकते हैं। अब सैंकड़ों ओटीटी प्लेटफार्म उपलब्ध है। नए नए आइडियाज पर काम करने का साहस पैदा हो रहा है।नए प्रोड्यूसर, राइटर, एक्टर, टेक्नीशियन सभी के लिए अच्छा मौका है। बतौर एक्टर मुझे मुख्य भूमिकाएं ऑफर हो रही हैं। मैं खुश हूं कि मैं भूमिकाओं का चुनाव कर पा रहा हूं। मैं तो यही कहूंगा कि अब ओटीटी की वजह से इस तरह की फिल्मों का भविष्य भी उज्ज्वल है।
गॉसिपगंज – ओटीटी प्लेटफार्म पर इन दिनों ज़्यादातर बोल्ड सब्जेक्ट वाली वेबसीरिज का बोल बाला है, ऐसे में क्या आप इंटीमेट सीन्स के लिए खुद को उपयुक्त मानते हैं?
अज़ीम शेख़ – इंटीमेट सीन भी अभिनय का ही हिस्सा है और अगर स्क्रिप्ट की ऐसी डिमांड है तो फिर अंतरंग दृश्यों से परहेज़ क्यों ? हां लेकिन मेरी सोच ये है की ऐसे दृश्य सिर्फ सनसनी फैलाने के उद्देश्य से फिल्म या वेबसीरिज में जबरदस्ती न ठूंसे गए हों।
मैं पहले से ही इस बात को लेकर निश्चिंत हूं कि जो देखने और करने में खुद को सहज लगे वहीं काम करूंगा।अगर कोई सिर्फ जबरदस्ती के व्यूअरशिप और सब्सक्राइबर्स के लिए इस तरह का कंटेंट सीरीज या फ़िल्म में डालता है तो मेरी दिलचस्पी नहीं होती।इन दृश्यों का कोई उद्देश्य तो हो जिससे कहानी को आगे बढ़ने में मदद मिले।
गॉसिपगंज – टीवी शो, वेबसीरिज या फिल्म करना कितना आसान या मुश्किल रहता है?
अज़ीम शेख़ – मुझे लगता है, अगर एक एक्टर अपने काम को लेकर मेहनती है तो कुछ मुश्किल नहीं है। मैं एक्टर हूं मुझे एक्टिंग करने में बहुत मजा आता है। कोई भी माध्यम हो, एक अच्छा निर्देशक मुश्किलों को दूर कर देता है। मेरे लिए डायरेक्टर्स बहुत अहम हैं। ये मेरी खुशकिस्मती है कि मैं आशुतोष गोवारिकर, अनीस बज़्मी, अनुराग कश्यप, विक्रमादित्य मोटवानी, गोल्डी बहल जैसे दिग्गज निर्देशकों के साथ काम कर चुका हूं। डायरेक्टर अच्छा हो तो बतौर एक्टर आप सिक्योर फील करते हैं और बहुत कुछ सीखने को मिलता है। अनुभव से काफ़ी चीज़ें आसान हो जाती हैं।
गॉसिपगंज – किसी कैरेक्टर को निभाने के लिए आप किस तरह से तैयारी करते हैं?
अज़ीम शेख़ – मैं समझता हूं कि अगर डायरेक्टर और एक्टर के बीच में एक समझ और भरोसा विकसित हो जाए तो आधे से ज़्यादा काम अपने आप हो जाता है। एक अच्छी स्क्रिप्ट और एक अच्छा डायरेक्ट किसी भी प्रोजेक्ट को खास बनाता है। एक स्क्रिप्ट आपको बता देती है कि आपको क्या करना है और निर्देशक आपको किरदार के बारे में विजन देता है।
एक राइटर और निर्देशक मिलकर एक्टर को बहुत सारी जानकारी देते हैं। इस जानकारी की वजह से मैं उस कैरेक्टर के हर पहलू को ध्यान में रख कर बहुत कुछ सोचता हूं और कोशिश करता हूं कि डायरेक्टर और राइटर के द्वारा गढ़े हुए किरदार को अपनी अभिनय क्षमता से निखार सकूं और मज़बूत बनाऊं।
गॉसिपगंज – आए दिन बॉलीवुड में ड्रग्स से संबंधित खबरें आती रहती हैं इस मामले में आपका क्या विचार है?
अज़ीम शेख़ – सबसे पहले तो मेरी विनती है आपसे की प्लीज़ इंडियन फ़िल्म इंडस्ट्री को बॉलीवुड न कहें। मुझे लगता है ये मीडिया के द्वारा दिया गया शब्द है। हॉलीवुड की तर्ज पर बॉलीवुड कहना एक मज़ाक की तरह ही लगता है। हमने अपनी हर रीजनल फिल्म इंडस्ट्री के नाम को तोड़ मरोड़ कर उसके आगे ‘वुड’ लगा दिया है जो बड़ा हास्यास्पद है। हम सबको मिलकर इस गलती को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए….
गॉसिपगंज – ड्रग्स से संबंधित खबरों के लगातार आने से फ़िल्म इंडस्ट्री की छवि ख़राब हुई है आप इसके बारे में क्या कहेंगे ?
अज़ीम शेख़ – जी मैं आपके इस सवाल पर ही आ रहा था। देखिए सर हो सकता है कि कुछ लोग ड्रग्स का सेवन करते होंगे। इंडस्ट्री के बाहर भी लोग इस प्रैक्टिस में लिप्त होते होंगे।ये उनकी पर्सनल चॉइस हो सकती है। लेकिन गिनती के कुछ लोगों के लिए पूरी इंडस्ट्री को कटघरे में लाकर खड़ा कर देना क्या ठीक है? इंडस्ट्री सॉफ्ट टारगेट है तो क्या इसे हमेशा बदनाम करते रहना जायज़ है?
मैंने आज तक अपने किसी भी परिचित को ड्रग्स का सेवन करते नहीं देखा। अगर कोई दोषी पाया जाता है तो कड़ी कार्यवाही होना ही चाहिए। कुछ लोगों के चलते सभी को बदनाम किया जाना ठीक नहीं। इस तरह की बदनामी से शरीफ और मेहनती लोग भी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। मैं ड्रग्स के उपयोग के सख़्त खिलाफ हूं और इसके लिए कानून से और भी ज़्यादा सख्ती की मांग करता हूं।
गॉसिपगंज – लॉकडाउन के बाद और किन प्रोजेक्ट्स में आपको देख सकेंगे?
अज़ीम शेख़ – फिलहाल तो निर्देशक शिखर चंद्रा की फ़िल्म ‘ इफरीत ‘ के प्रि-प्रोडक्शन पर काम चल रहा है। इसकी शूटिंग जुलाई के आख़िरी हफ्ते से मध्य प्रदेश की अलग अलग लोकेशंस पर की जाएगी।
कुछ ही दिनों में एक अन्य फिल्म की अनाउंसमेंट भी होने वाली है, अभी उस बारे में मैं ज्यादा कुछ बोल नहीं सकता। एक और फिल्म के लिए भी बात चल रही है, शायद फाइनल हो जाए।लॉकडाउन के चलते कुछ प्रोजेक्ट्स रुक गए हैं सभी प्रोजेक्ट सुचारू रूप से शुरू होने में अभी थोड़ा और वक्त लग सकता है। मेरा सपना है कि मैं अच्छे डायरेक्टर और फिल्ममेकर्स के साथ काम करूं, मैं इस दिशा में मेहनत भी कर रहा हूं। अगर मेरी किस्मत में हुआ तो यकीकन कुछ अच्छे प्रोजेक्ट से जुडूंगा। कुल मिलाकर अभी कई जगह बातचीत ही चल रही है। इस बारे में कुछ भी बोलना जल्दबाज़ी होगी।
गॉसिपगंज – ज़िंदगी में हम कभी न कभी समाज में घट रही घटनाओं से परेशान होकर रिएक्ट करते हैं। आपको किन बातों पर गुस्सा आता है ?
अज़ीम शेख़ – वैसे तो मैं हमेशा अपने गुस्से पर काबू रखता हूं लेकिन झूट से मुझे चिढ़ होती है। जब झूट को सच बनाकर पेश किया जाता है तो निश्चित तौर पर निराशा होती है या जब आपके बारे में गलत तरह की अफवाहें पैदा की जाए तो गुस्सा आना स्वाभाविक है।
कुछ सालों से मैने ऑब्जर्व किया है कि जबसे ये डिजिटल कल्चर आया है तब से हम ज़्यादातर घटनाओं पर बहुत जल्दी निराश होने लगे हैं या हमें जल्दी से गुस्सा आ जाता है और वो घटना भी ऐसी होती हैं जिसकी कोई प्रमाणिकता भी नहीं होती है। लेकिन बगैर किसी ठोस जानकारी के हम खुद उसे सही या गलत ठहराते हैं। इस तरह की झूठी खबरों में हम इतना फंस चुके हैं कि अपनी समझ भी खोने लगे हैं। खबरों के नाम पर हमारी भावनाओं से खेला जा रहा है। हमें समझदार बनना होगा ताकि हम सब अफवाहों में न उलझें। हमें खुश रहकर अपनों का ख्याल रखना चाहिए जो ज़्यादा ज़रूरी है। ज़िम्मेदारी और सतर्कता का पालन करके हम देशहित में अपना योगदान दे सकते हैं।
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