दुर्गा खोटे बॉलीवुड की सबसे रईस हीरोइन थीं | जानना चाहेंगे आप?

दुर्गा खोटे का आज 114वां जन्मदिन है । दुर्गा खोटे बॉलीवुड की उन हस्तियों में से एक हैं जिन्होंने हिन्दी सिनेमा में महिलाओ के लिए नए आयाम बनाए। वो दौर था जब बॉलीवुड में एक्ट्रेस का कोई स्थान नहीं था। महिलाओं का किरदार भी पुरुष ही निभाया करते थे । ऐसे दौर में दुर्गा खोटे ने फिल्मों में एंट्री की और हीरोइन के तौर पर अपनी पहचान बनाई ।

दुर्गा का जन्म 14 जनवरी 1905 को मुंबई में हुआ था । जब दुर्गा ने बॉलीवुड में आने का फैसला लिया तो इस महिलाओं के लिए एक घृणित काम माना जाता था । दुर्गा खोटे एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं । ऐसे में उनके इस फैसले से बॉलीवुड में हड़कंप मच गया था । फिल्मों में आने के लिए दुर्गा को कई तरह की बातें सुननी पड़ीं लेकिन वो अपने इरादे की पक्की निकलीं ।

18 साल की उम्र में ही दुर्गा की शादी एक बेहद अमीर खानदान में कर दी गई थी। दुर्गा के पति का नाम विश्वनाथ खोटे था । दोनों का विवाहित जीवन बहुत अच्छा चल रहा था । दोनों के दो बेटे भी हुए । विश्वनाथ मैकेनिकल इंजीनियर थे। जब दुर्गा 20 साल की हुई ही थीं कि उनके पति का निधन हो गया । इसके बाद उन्हें आर्थिक तंगी से जूझना पड़ा ।

दुर्गा अपने बेटों के साथ ससुराल में रहती थीं लेकिन कुछ समय बाद दुर्गा को लगने लगा कि उन्हें खुद ही कुछ काम करने की जरूरत है । दुर्गा पढ़ी-लिखी थीं । दुर्गा ने पैसे कमाने के लिए सबसे पहले ट्यूशन का सहारा लिया । फिर एक दिन उन्हें फिल्म ‘फरेबी जाल’ में काम करने का प्रस्ताव मिला ।

ये वो दौर था जब बोलती फिल्मों की शुरुआत हुई । पैसे की मजबूरी के चलते दुर्गा ने रोल स्वीकार किया । फिल्म में दुर्गा का रोल महज़ दस मिनट का था, जिसके कारण उन्हें फिल्म की कहानी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी । फिल्म रिलीज हुई तो खराब कंटेंट की वजह से दुर्गा को सामाजिक आलोचना का सामना करना पड़ा ।

आलोचनाओं के चलते दुर्गा फिल्म इंडस्ट्री में अपने पहले कदम में ही लड़खड़ा गईं और उन्होंने फिल्मों से अपने कदम वापिस खींच लिए । इसके बाद ‘इत्तेफाक’ से इस फिल्म से निर्देशक वी शांताराम की नजर दुर्गा पर पड़ी । उन्होनें अपनी फिल्म ‘अयोध्येचा राजा’ में उन्हें मुख्य पात्र ‘तारामती’ का किरदार निभाने का प्रस्ताव दिया ।

यह फिल्म हिंदी और मराठी भाषा में ‘प्रभात स्टूडियो’ के बैनर तले बनाई गई । जब दुर्गा को प्रस्ताव मिला तो उन्होंने पहले मना कर दिया । फिर शांताराम के समझाने पर दुर्गा ने खुद को दूसरा मौका दिया । फिल्म के रिलीज से पहले दुर्गा बहुत ही घबराई हुई थीं । उन्हें डर था कहीं पहली फिल्म की तरह उन्हें इसके लिए भी आलोचनाओं का सामना न करना पड़े ।

फिल्म रिलीज हुई तो लोगों ने दुर्गा के रोल को बहुत पसंद किया । जो लोग शुरुआत में उनकी आलोचनाएं कर रहे थे, बाद में वही उनके लिए तारीफों के पुल बांधने लगे । रातों-रात दुर्गा एक स्टार बन गईं । इसके बाद दुर्गा ने प्रभात स्टूडियो की दूसरी फिल्म भी की । ये फिल्म थी ‘माया मछिन्द्र’ ।  इस फिल्म में दुर्गा ने एक रानी का किरदार निभाया जिसका पालतू जानवर चीता था ।

इस फिल्म के बाद तो दुर्गा को हीरोइन का तमगा मिल चुका था । दुर्गा ने हिंदी और मराठी के अलावा बंगाली फिल्मों में भी काम किया । दुर्गा के दो बेटे थे हरिन और बकुल । फिल्में करने के दौरान ही दुर्गा के एक बेटे हरिन का निधन हाे गया । इससे दुर्गा को गहरा सदमा लगा था । दुर्गा का सबसे यादगार किरदार फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में जोधबाई का था ।

दुर्गा खोटे ने फिल्म निर्माण में भी अपना हाथ आजमाया । ये वो दौर था जब महिलाएं फिल्मों में अभिनय करने तक ही सीमित थीं । दुर्गा ने अपने दूसरे पति राशिद खान के साथ ‘फैक्ट फिल्म्स’ प्रोडक्शन हाऊस’ के लिए कई शॉर्ट फिल्में बनाई । जिनकी काफी सराहना भी हुई । दुर्गा हमेशा से विदेशी फिल्म फेस्टिवल में जाती थीं । इस कारण उनके अंदर एक अच्छी फिल्म का निर्माण करने की समझ आ गई ।

दुर्गा खोटे ने लगभग 50 साल फिल्मी दुनिया में काम किया और करीब 200 फिल्में की । उन्हें दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया । दुर्गा खोटे ने ज्यादातर मां के किरदार को सिल्वर स्क्रीन पर निभाया। उनकी आख़िरी फिल्म कर्ज सन 1980 में आई । इसके बाद बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने फिल्मी दुनिया को अलविदा कह दिया । 1991 में दुर्गा खोटे ने दुनिया को अलविदा कह दिया ।

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