बनवारी झोल | अपने सपने को ज़िंदगी में ढालना कोई इनसे सीखे
खास बातचीत
बनवारी झोल | अपने सपने को ज़िंदगी में ढालना कोई इनसे सीखे, बनवारी झोल जिनका नाम का ज़िक्र ज़ुबां पर आते ही उनके निभाए किरदार ज़ेहन में तैरने लगते हैं। उम्र और सोच इन्होंने दोनों से आगे जाकर अपना मकाम हासिल किया है। गॉसिपगंज के एडिटर मधुरेंद्र पाण्डे ने बनवारी झोल से बातचीत की।
मधुरेंद्र पाण्डे – आप दिल्ली के हैं और कहते हैं कि दिल्ली से मुंबई का एक्टिंग का सफर आसान होता है। ज्यादातर लोगों के साथ ऐसा ही हुआ है।
बनवारी झोल – ये सच है कि मैं दिल्ली में ही पैदा हुआ, पला बढ़ा लेकिन मै मूल निवासी हिमाचल प्रदेश का हूं। हां दिल्ली में रहने से फायदा ये हुआ कि मेरा एक्टिंग का जो शौक था वो पूरा हो गया।
मधुरेंद्र पाण्डे – आपने अपने करियर की शुरुआत कब और कैसे की।
बनवारी झोल – साल 1976-77 की बात है। मैं दूरदर्शन से जुड़ गया था। तब दूरदर्शन पर सीरियल नहीं आते थे बल्कि नाटक आया करते थे। मंगलवार और शनिवार को उनका प्रसारण होता था। मैं उसमें काम करने लगा। महीने में एक या दो बार मुझे मौका मिलता था। इसके अलावा कभी कभी मुंबई से टीम आती थी उसके साथ भी दिल्ली में काम कर लिया करता था। बस यहीं से मेरा एक्टिंग का जो कीड़ा था वो बाहर आने लगा था।
मधुरेंद्र पाण्डे – कहा जाए तो आपने स्टेज शोज़ काफी किए हैं।
बनवारी झोल – हां क्योंकि उस वक्त उसी का दौर था। मैं दिल्ली से बाहर नहीं जाना चाहता था। दूरदर्शन के लिए तो मैंने अनगिनत प्ले किए हैं। मैंने एक नाटक किया था उस वक्त मैं 22-23 साल का था और किरदार था एक्ट्रेस के पिता का। मैंने वो भी निभाया। दरअसल मेरे लिए किरदार अच्छा होना मायने रखता है। किरदार की उम्र के हिसाब से मैं काम नहीं करता।
कभी सोचा नहीं था कि मुझे क्या बनना है। करनी एक्टिंग सिर्फ ये पता था। दूरदर्शन का भी दौर बदला। नए साल पर दूरदर्शन पर हर 31 दिसंबर को कार्यक्रम आता था। मैं उसमें ज़रूर काम करता था। एक शौक था मुझे माइन का। मैंने माइन बहुत किए हैं। एनसीआरटी के लिए भी काफी माइन किए हैं।
मधुरेंद्र पाण्डे – आपने अपना करियर 1976 में शुरु किया जैसा कि आपने बताया। माता पिता का रूख कैसे रहा।
बनवारी झोल – मैं आज जहां भी हूं अपने पिता के आशीर्वाद की बदौलत हूं। जब मैं इस एक्टिंग की फील्ड में आया तो लोग इसे अच्छा नहीं समझा करते थे। लड़कियों की तो बात छोड़िए लोग अपने लड़कों को इस फील्ड में नहीं भेजना चाहते थे। लेकिन जैसे ही मेरा काम दूरदर्शन पर शुरु हुआ। दो पैसे का धंधा मिला। मेरे पिता ने मेरा पूरा साथ दिया।
1976 में मैंने नौकरी भी की लेकिन साथ में नाटक का काम चलता रहा। तब एक माइन शो के 20 रूपये मिला करते थे। मैं उसमें ही काफी खुश था। मेरा माइन का ग्रुप था। मैंने पूरी दुनिया माइन के सहारे घूमी है। लंदन, फिनलैंड, स्पेन हर जगह मैंने शो किए हैं। लेकिन दूरदर्शन के लिए मैं काम करता रहा।
नाटकों से फिर सीरियल्स का दौर आया तब 13 एपिसोड के सीरियल होते थे। मैंने खुशियां सीरियल में लड़के का फादर का किरदार निभाया जो डीडी वन पर आताथा। इसके अलावा राज की एक बात, ,एक दिल हज़ार अफसाने और कहकहों की दुनिया में भी काम किया।
मधुरेंद्र पाण्डे – आप को कब लगा कि अब दिल्ली से मुंबई चलना चाहिए क्योंकि एक्टिंग के लिए तो मुंबई ही है जहां करियर और बेहतरी की ओर जा सकता है।
बनवारी झोल – मैं दिल्ली से मुंबई साल 2000 में आया। बच्चे बड़े हो चुके थे। मेरी पत्नी ने मेरा काफी साथ दिया। फैमिली ही थी जिसकी बदौलत मैं मुंबई आ सका।
दरअसल साल 1995 से लेकर साल 2000 के बीच दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन का काम लगभग खत्म हो चुका था। तो खाली रहता था। परिवार ने साथ दिया और मैं मुंबई आ गया।
मधुरेंद्र पाण्डे – मुंबई में आकर तो आपका काम जम गया होगा क्योंकि पुराना अनुभव आपके काम आ ही गया होगा।
बनवारी झोल – नहीं वो कहने वाली बात है। जब मैं दिल्ली से मुंबई आया तो लगा था कि मुझे आसानी से काम मिल जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं। दिल्ली में मैं मशहूर था लेकिन मुंबई में ऐसा नहीं था। मैंने भी लगभग 1 साल तक स्ट्रगल किया है। लोगों से मिलता जुलता रहा।
बड़ी मुश्किल से मुझे पहला मौका एक पंजाबी सीरियल में मिला उसका नाम था आज नइयो लड़ना, इसमें मैं एक चादर बेचने वाला बना था। ये लशतारा पंजाबी चैनल पर टेलीकास्ट हुआ था। उसके बाद मुझे पंजाबी में काम मिलना शुरु हो गया।
राजा बुंदेला का सीरियल सौ रब दी जो जी पंजाबी पर टेलीकास्ट होता था उसमें काम किया। इसके बाद मुझे लाफ्टर पंजाबी, लाफ्टर चैलेंज में मुझे मौका मिला। सीआईडी सीरियल जो सोनी पर आता था उसमें काम किया। कॉमेडी सर्कस, कॉमेडी चैलेंज और डीडी किसान पर किसान जाग उठा, तेरे शहर में, स्टार प्लस पर लक्की सीरियल, महिमा शनि देव की। तमाम सीरियल्स में काम किया।
मधुरेंद्र पाण्डे – आपने ज्यादातर कॉमेडी की भूमिकाएं निभाईं हैं। ऐसे कौन से कॉमेडी सीरियल हैं जिनमें काम करके आपको अधिक आनंद आया।
बनवारी झोल – मैंने सबसे अधिक सब टीवी के शोज़ किए हैं कॉमेडी वाले। आदत से मजबूर, चिड़ियाघर, लापतागंज, सजन से झूठ मत बोलो, इसके अलावा स्टार प्लस पर ससुराल गेंदा फूल भी किया है। मेरे लिए कॉमेडी आसान है। मुझे सारे सीरियल अच्छे लगते हैं।
मधुरेंद्र पाण्डे – सीरियल के बाद फिल्मों का रुख भी किया आपने, कैसे रहा वहां का सफर।
बनवारी झोल – वहां का सफर भी अच्छा रहा। पहली फिल्म बाज़ीगर की थी। बॉबी देओल के साथ क्रांति करके फिल्म भी आ चुकी है।
दीवानगी, एक्सक्यूज़ मी, फिर हेराफेरी, तथास्तु, वन टू थ्री, गॉड तुसी ग्रेट हो, ओ माइ गॉड, मर्डर 2, राज 3, रामलीला, ओ तेरी, बांबे टू गोवा, भावनाओं को समझो, शुद्ध देसी रोमांस तमाम फिल्में भी कीं हैं।
इसके अलावा चूड़ा और हम हैं किंग ये दोनों फिल्में जल्द रिलीज होने वाली हैं। अभी हाल ही में मेरी मधुशाला फिल्म रिलीज़ हुई है। इसके अलावा हॉलीवुड की इट कुड भी यू भी कर चुका हूं। ये फिल्म करीब पांच साल पहले रिलीज हुई थी।
मधुरेंद्र पाण्डे – अब आपका सपना क्या है। क्योंकि सपने तो हमेशा रहते हैं।
बनवारी झोल – देखिए फैमिली सेटल्ड है। बच्चों की शादी कर चुका हूं। मुंबई में अच्छा लगता है। लेकिन इतना तय है कि आप भले ही अच्छे कलाकार हों लेकिन मुंबई में किस्मत का साथ देना भी ज़रूरी है।
अभी एक भोजपुरी फिल्म के पोस्टर पर अपनी तस्वीर देखी तो अच्छा लगा था। अब बस कॉमेडी में ऐसा काम चाहिए जो थोड़ा लंबा चले। सोचता हूं कि अभी इंडस्ट्री को 5 साल और देना है अपनी ज़िंदगी के। कुछ एक सीरियस किरदार भी निभाने हैं।
मधुरेंद्र पाण्डे – हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। बहुत अच्छा लगा आपके बात करके।
बनवारी झोल – मुझे भी आपसे बात करके अच्छा लगा। धन्यवाद।
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