भगवान के भरोसे मत बैठो, क्या पता भगवान ही तुम्हारे भरोसे बैठा हो!

भगवान के भरोसे मत बैठो, क्या पता भगवान ही तुम्हारे भरोसे बैठा हो! ‘मांझी: The Mountain Man’ में उनका एक संवाद है , वाकई, नवाज़ ने कर दिखाया है! , अपनी तरह के इकलौते और ज़बरदस्त एक्टर नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का जन्मदिन है।

19 मई 1974 को उत्तरप्रदेश के मुजफ्फनगर जिले के बुढ़ाना गांव में जन्में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के पिता एक किसान थे। नवाज़ सात भाइयों और दो बहनों में से एक हैं। नवाज़ का परिवार काफी बड़ा था और आमदनी सीमित तो ज़ाहिर है उनका बचपन काफी अभावों भरा रहा है। छोटे-से कस्बे बुढ़ाना से शुरूआती स्कूलिंग के बाद नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी हरिद्वार पहुंचे जहां उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी से साइंस में ग्रेजुएशन किया।

उसके बाद नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी दिल्ली आ गए। दिल्ली में उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला ले लिया और 1996 में वहां से ग्रेजुएट होकर निकले। उसके बाद नवाज़ ‘साक्षी थिएटर ग्रुप’ के साथ जुड़ गए जहां उन्हें मनोज वाजपेयी और सौरभ शुक्ला जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इसके बाद वो मुंबई चले आये और यहां से उनकी असली संघर्ष की दास्तान शुरू हुई।

मुंबई आने से पहले की बात है। दिल्ली में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को अपने खर्चे चलाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता था। बहुत खोजने के बाद उन्हें चौकीदार की नौकरी मिली। इस नौकरी को पाने के लिए भी नवाज़ को कुछेक हज़ार रुपये गारंटी के रूप में जमा कराने थे।

जो उन्होंने किसी दोस्त से लेकर भरे। वे शारीरिक रूप से काफी कमजोर से थे, जब भी मौका मिलता वो बैठ जाया करते जबकि चौकीदारी करते हुए उनकी ड्यूटी खड़े रहने की थी। एक दिन मालिक ने उन्हें बैठा हुआ देख लिया और उसी दिन उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया।

1999 में आई फ़िल्म ‘शूल’ में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक वेटर की भूमिका में थे। आमिर की फ़िल्म ‘सरफ़रोश’ में भी नवाज़ुद्दीन एक मुखबिर की छोटी सी भूमिका में दिखे थे। उस वक़्त शायद ही किसी ने सोचा था कि छोटे मोटे किरदार करने वाला यह आर्टिस्ट किसी दिन लीड रोल भी करेगा। जैसा कि हमने ‘फ्रीकी अली’, ‘मांझी: The Mountain Man’ जैसी फ़िल्मों में देखा है। आपने नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ में भी एक चोर की छोटी सी भूमिका में देखा होगा।

बकौल नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी– ”हताशा और मायूसी के उन दिनों में मुझे अपनी अम्मी की एक बात याद रही कि 12 साल में तो घूरे के दिन भी बदल जाते हैं बेटा तू तो इंसान है।”  मुंबई में वो लगातार रिजेक्ट होते रहे क्योंकि सबको हीरो चाहिए था और बकौल नवाज़ वो हीरो मेटेरियल नहीं थे।

असली पहचान उन्‍हें ‘पीपली लाइव’, ‘क‍हानी’, ‘गैंग्‍स ऑफ वासेपुर’, ‘द लंच बॉक्‍स’ जैसी फ़िल्मों से मिली। हाल ही में शाह रुख़ ख़ान के साथ ‘रईस’ में भी उनके अभिनय की खूब तारीफ हुई। भगवान ने भले ही देर में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को मौका दिया लेकिन जब भगवान ने ठान लिया तो नवाज़ एक्टिंग की दुनिया का चमकता सितारा बन कर उभरे।

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