खेमचंद प्रकाश | किस्मत और कला के धनी, संगीत के जादूगर
खेमचंद प्रकाश | किस्मत और कला के धनी, संगीत के जादूगर, कभी कभी कुछ यादें ऐसी होती हैं जिनके बारे में लिखना और बताना बेहद दिलचस्प होता है। अब बात कर लीजिए लता मंगेशकर जी की है। मामला आज़ादी के पहले से शुरु होता है।
दरअसल लता मंगेशकर गाना तो काफी अरसे से गा रही थीं लेकिन उनके हिस्से में कोई सुपर डुपर हिट गाना नहीं आ रहा था। ऐसे दौर में लता मंगेशकर की किस्मत और खेमचंद प्रकाश की कला दोनों जब मिल गई तो ऐसे गाना बन गया जो अब कई पीढ़ियां गुनगुना चुकी हैं लेकिन अभी भी उस गाने की ताज़गी पर कोई असर नहीं पड़ा है। आज भी वो उतना ही बेहतरीन लगता है।
दरअसल अशोक कुमार बांबे टॉकीज़ के लिए फिल्म बना रहे थे। फिल्म का नाम था महल। इस फिल्म के संगीतकार थे खेमचंद प्रकाश। बस कहते हैं कि किस्मत कभी कभी आपके सोचने से कुछ अधिक ही दे जाती है। इसी फिल्म का एक गाना है आएगा आने वाला। इस गाने ने दो लोगों की किस्मत फर्श से अर्श पर पहुंचा दी। एक तो लता मंगेशकर और दूसरी मधुबाला।
यह किस्सा भी मशहूर है कि पहले ‘आएगा आनेवाला…’ गाना अभिनेत्री टुन टुन गाने वाली थीं। मगर उन्होंने कारदार प्रोडक्शंस से अनुबंध कर रखा था, जिसके कारण वह किसी दूसरी कंपनी की फिल्मों के लिए गाने नहीं गा सकती थीं। तब यह गाना लता मंगेशकर के हिस्से में आया और इसने इतिहास रच दिया। ‘महल’ पुनर्जन्म पर बनी पहली फिल्म थी।
लता मंगेशकर 1942 से फिल्मों में गा रही थीं और मधुबाला भी 1942 से ही फिल्मों में अभिनय कर रही थीं। मगर उनके करियर में जो करंट चाहिए था, वह मिला 1949 की फिल्म ‘महल’ से। ‘महल’ ने न सिर्फ लता मंगेशकर के करियर को रोशन कर दिया, बल्कि मधुबाला को भी रातोंरात सफल हीरोइन बना दिया।
कहा जाता है कि रंजीत के सेठ चंदूलाल शाह ने उनकी आवाज नापसंद कर दी थी, तब सेठजी से खेमचंद प्रकाश ने कहा था कि देखना एक दिन यही आवाज देश भर में गूंजेगी। खेमचंद प्रकाश का कहना सही हुआ। ‘महल’ से लता मंगेशकर की आवाज देश भर में गूंजी। मगर ‘महल’ रिलीज से दो महीने पहले ही खेमचंद प्रकाश का निधन हो गया।
‘महल’ का जिक्र एक मशहूर घटना को लेकर हमेशा होता रहा है। 1950 के आसपास की बात थी। ऑल इंडिया रेडियो ने जब ‘महल’ के गाने बजाने शुरू किए, तो अचानक रेडियो केंद्र में फोन करने वाले बढ़ गए। ज्यादातर फोन करने वाले यह जानना चाहते थे कि ‘महल’ का जो गाना ‘आएगा आने वाला..’ बजाया जा रहा है, उसकी गायिका कौन है।
फिल्म के रेकॉर्ड पर कामिनी का नाम लिखा हुआ था, जो ‘महल’ में हीरोइन मधुबाला के किरदार का नाम था। जब फोन करने वालों की संख्या ज्यादा ही बढ़ने लगी तो ऑल इंडिया रेडियो ने फिल्म के रेकॉर्ड बनाने वाली कंपनी से इस बारे में बातचीत की।
उनकी स्वीकृति ली और इसके बाद रेडियो से गूंजा लता मंगेशकर का नाम। तब से शायद ही कोई ऐसा दिन रहा होगा, जिस दिन रेडियो पर लता मंगेशकर के नाम का उद्घोष नहीं हुआ हो।
खेमचंद प्रकाश की रागदारियों के बारे में संगीतकार नौशाद का कहना था कि उन्होंने वैसा संगीत बनाने की खूब कोशिशें कीं, मगर कभी भी खेमंचद प्रकाश तक नहीं पहुंच सके। और यह भी उनकी फिल्म ‘तानसेन’ से पहले संगीतकार अक्सर तानसेन से खयाल गंवाते रहे थे।
जबकि खयाल गायिकी को लोकप्रियता मोहम्मद शाह रंगीले (1719-1748) के दौर में मिली थी। तानसेन (1493-1586) के बहुत बाद में खयाल गायिकी की परंपरा मानी जाती रही है।
खेमचंद प्रकाश इस पहलू को जानते थे इसीलिए उन्होंने फिल्म ‘तानसेन’ (1943) में तानसेन (केएल सहगल) से खयाल के बजाय ध्रुपद गवाया था, जिसकी जड़ें 2000 सालों से भी ज्यादा पुरानी हैं और जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की महत्त्वपूर्ण गायन-शैली मानी गई। बहरहाल, ‘महल’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के झंडे गाड़ दिए थे।
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