नौशाद साहब जिन्होंने बॉलीवुड को हमेशा कुछ नया दिया, जन्मदिन विशेष

नौशाद साहब एक बड़े संगीतकार होने के साथ जिंदादिल और हमेशा खुश रहने वाले इंसान भी थे। नौशाद साहब का जन्म 25 दिसंबर 1919 को लखनऊ में मुंशी वाहिद अली के घर में हुआ था। वह 17 साल की उम्र में ही वो मुंबई आ गए थे।

नौशाद साहब ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविताओं को भी अपने संगीत से सजाया, जो कि एक एल्बम के रूप में रिलीज़ हुआ था।  दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा…, नैन लड़ जइहैं…, मोहे पनघट पे नंदलाल… जैसे एक से एक सुरीले गीत देने वाले संगीतकार नौशाद ने अपने लंबे फिल्मी करियर में हमेशा कुछ न कुछ नया देने का प्रयास किया।

संगीत तो उनकी रूह थी लेकिन नौशाद के अंदर एक शायर भी बसता था। वो एक बेहतरीन शायर थे, एक से एक ख़ूबसूरत शेर उन्होंने अपने जीवन में बयां किए हैं, उनका दीवान ‘आठवां सुर’ नाम से प्रकाशित भी हो चुका है। नौशाद साहब ने कई ख़ूबसूरत ग़ज़लें भी लिखी। गजलों में मोहब्बत का तरन्नुम एक लंबे सुकून के साथ रूहानियत को बयां करती है।

नौशाद साहब पहले भारतीय संगीतकार थे जो फिल्म ‘आन’ के बैकग्राउंड म्यूजिक के सिलसिले में विदेश (लंदन) गए थे। इसी फिल्म के लिए नौशाद ने मौसीक़ी की दुनिया में पहली बार सौ वाद्य यंत्रों के ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल कर पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया था। साउंड मिक्सिंग भी हमारी फिल्म इंडस्ट्री को नौशाद की ही देन है।

फिल्मी पत्रिका फिल्मफेयर ने सन् 1953 में फ़िल्मफेयर अवार्ड की शुरुआत की और उसी साल नौशाद साहब को फिल्म ‘बैजू बावरा’ के लिए बेस्ट संगीतकार का फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। 1982 में ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ पाने वाले वे पहले शुद्ध कंपोजर बने। इससे पहले यह पुरस्कार किसी कंपोजर को नहीं मिला था। 1992 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ सम्मान से भी नवाजा गया।

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