अभिनय को बना लिया था जुनून, फिर उससे अलग भी नहीं हुए, ऐसे थे ओम पुरी

अभिनय को बना लिया था जुनून, फिर उससे अलग भी नहीं हुए, ऐसे थे ओम पुरी , जवानी के दिनों में वक्त के थपेड़ों से जूझते ओमपुरी दिल्ली आते है और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एडमिशन लेते है। लेकिन यहां भी हिंदी और पंजाबी भाषा में हुई अपनी शिक्षा को लेकर उसके मन में जो कुंठा पैदा होती है वह उसे लगातार वापस पटियाला जाने के लिए उकसाता रहता है। उस वक्त के एनएसडी के डायरेक्टर अब्राहम अल्काजी ने ओमपुरी की परेशानी भांपी और एम के रैना को उससे बात करने और उत्साहित करने का जिम्मा सौंपा।

विजय तंदुलकर के मराठी नाटक पर बनी फिल्म घासीराम कोतवाल में अभिनय के साथ पुरी ने अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत की थी। इस फिल्म का निर्देशन के हरिहरन और मनी कौल ने किया था। दिलचस्प बात यह है कि फिल्म एफटीटीआई के 16 छात्रों के सहयोग से बनी थी। एक्टर ने दावा किया था कि उन्हें अपने बेहतरीन अभिनय के लिए मूंगफली दी गई थी।

एनएसडी के बाद ओमपुरी का अगला पड़ाव राष्ट्रीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे था। यहां एनएसडी में बने दोस्त नसीरुद्दीन शाह भी ओम के साथ थे। जैसा कि आमतौर पर होता है कि पुणे के बाद अगला पड़ाव मुंबई होता है वही ओम के साथ भी हुआ। यहां पहुंचकर फिर से एक बार शुरू हुआ फिल्मों में काम पाने के लिए संघर्षों का दौर।

ओम को पहला असाइनमेंट मिला एक पैकेजिंग कंपनी के एक विज्ञापन में जिसे बना रहे थे गोविंद निहलानी। फिर फिल्में मिली और ओम मशहूर होते चले गए। फिल्म अर्धसत्य ने ओमपुरी की पूरी जिंदगी बदल दी थी। अर्धसत्य की जो भूमिका ओम ने निभाई थी वो पहले अमिताभ बच्चन को ऑफर की गई थी लेकिन व्यस्तता की वजह से अमिताभ ने वह प्रस्ताव ठुकरा दिया था और बाद में जो हुआ वह इतिहास है। ओमपुरी के निधन के बाद अब बॉलीवुड की एक जानदार आवाज खामोश हो गई। Gossip Ganj Team की ओर सेे उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि।

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