तलत महमूद | ऐसा गायक जिसको दिल दे बैठी थीं कई अभिनेत्रियां

पुण्यतिथि पर तलत महमूद के अनकहे अनजाने किस्से

तलत महमूद की 22 वीं पुण्यतिथि है। उन्हें ग़ज़लों का शहंशाह भी कहा जाता था। भावुक कर देने वाली अपनी कांपती, थरथराती और मखमली आवाज़ से सबका दिल जीतने वाले तलत महमूद अपने दौर के बेहद सम्मानित सिंगर रहे हैं। दिलों को छू लेने वाली अपनी गायकी के दम पर उन्होंने अपने समकालीन अन्य गायकों मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मुकेश, मन्ना डे और हेमंत कुमार के बीच भी अपनी एक अलग पहचान बनाई।

24 फरवरी, 1924 को लखनऊ में जन्में तलत महमूद को बचपन से ही संगीत में दिलचस्पी रही! महज 16 साल की उम्र में ही उन्होंने गज़लें गाना शुरू कर दिया था। तब वो ऑल इंडिया रेडियो के लिए गाते थे। इसके बाद उन्होंने लखनऊ के दि मैरिस संगीत कॉलेज से संगीत की शिक्षा ली।

उसके बाद एच।एम।वी द्वारा उनकी गज़लों का एक रिकॉर्ड जारी होने के बाद संगीतकारों का ध्यान उनकी तरफ गया। यह रिकॉर्ड उन्होंने तपन कुमार के नाम से गाया था! बहरहाल, फ़िल्मों में उन्हें पहला ब्रेक ‘शिक़स्त’ के गीत ‘सपनों की सुहानी दुनिया को’ से मिला, लेकिन उन्हें ख्याति मिली साल 1944 में गाये उनके गीत ‘तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी’ से।

शायद कम ही लोग जानते हों कि तलत महमूद एक अच्छे एक्टर भी थे। उन्होंने दर्जन भर फिल्मों में काम किया और वो भी नूतन, माला सिन्हा, और सुरैया जैसी उस जमाने की दिग्गज अदाकाराओं के साथ। हालांकि सिंगिंग पर फोकस करने के लिए उन्होंने एक्टिंग छोड़ दी।

उनकी पहली तीन फिल्में थीं-राजलक्ष्मी (1945), तुम और मैं (1947) और सम्पति (1949)। तलत ने ​इन फिल्मों के लिए गाने भी गए और अभिनय भी किया। लेकिन, अभिनय में जब उन्हें बड़ी कामयाबी नहीं मिली तो उन्होंने अपना सारा ध्यान संगीत पर केन्द्रित कर दिया।

तलत महमूद अपने हर गाने में परफेक्शन चाहते थे। ऐसा ही किस्सा बताते हुए संगीतकार खय्याम ने कभी कहा था कि शाम-ए-गम की रिकॉर्डिंग के लिए उन्हें लगातार तीन दिन स्टूडियो आना पड़ा था। गलती दूसरे म्यूजिशियंस की थी लेकिन तलत को परफेक्शन के साथ वो गाना चाहिए था। इसके बाद कई रिकॉर्डिंग्स में से सबसे अच्छा हिस्सा छांटा गया और फिर इसे मिक्स किया गया।

तब जाकर के फाइनल गाना तैयार हुआ था।तलत महमूद और अभिनेता दिलीप कुमार की जोड़ी खूब पॉपुलर हुई। दिलीप कुमार पर तलत की आवाज भी बहुत सूट करती थी। शाम-ए-गम की कसम गाना उन्हीं पर फिल्माया गया था। फिल्म थी साल 1953 में आई फुटपाथ।

साल 1953 में आई फिल्म लीड हीरो के तौर पर तलत महमूद की पहली फिल्म थी। इस फिल्म में उनकी हीरोइन थीं श्यामा। श्यामा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि फिल्म की शूटिंग के दौरान उनका तलत महमूद पर क्रश था।

श्यामा ने बताया था कि उन्हें तलत महमूद इतने अच्छे लगे कि वो उनसे शादी करना चाहती थीं। हालांकि जल्द ही उन्हें एक मैगजीन के जरिए पता चला कि तलत पहले से ही शादीशुदा हैं और तब उन्होंने तलत से शादी करने का ख्याल छोड़ दिया।

24 फरवरी साल 1924 में एक रुढ़िवादी मुस्लिम परिवार में पैदा हुए तलत महमूद की संगीत में रुचि बचपन से ही थी। 16 साल की उम्र में उन्होंने गज़लें गाना शुरू कर दिया था। तब वो आॅल इंडिया रेडियो के लिए गाते थे। इसके बाद उन्होंने लखनउ के दि मैरिस म्यूजिक कॉलेज से संगीत की ​शिक्षा ली। साल 1941 में एचएमवी को एक नए टैलेंट की तलाश थी।

एचएमवी ने तलत को तीन गानों का पहला आॅफिशियल सिंगिंग कॉन्ट्रैक्ट आॅफर किया। इस वक्त उन्हें तपन कुमार के नाम से गाने का मौका मिला वो अपने असली नाम से इन गानों का क्रेडिट नहीं ले पाए थे।

जब वह गाने की रिकॉर्डिंग कर रहे थे उसी दौरान उनकी मुलाकात म्यूजिक डायरेक्टर पंकज मलिक से हुई और पंकज ने उनसे कहा कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में किस्मत आजमानी चाहिए। तब तलत पढ़ाई कर रहे थे इसलिए उन्होंने फिल्मों की बात नहीं सोची। लेकिन साल 1944 में गाने तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी की सफलता के बाद तलत ने एक्टिंग का भी रुख किया।

उनके गाए कुछ गीतों में- ‘जलते हैं जिसके लिए’, ‘मेरी याद में तुम न आंसू बहाना’, फिर वही शाम वही गम’, जायें तो जायें कहां’, ‘ऐ मेरे दिल कहीं और चल’ आदि एक लंबी फेहरिस्त है। उनेक गाये गीत आज भी याद किये जाते हैं! भारत सरकार ने गायकी में उनके योगदान के लिए उन्हें साल 1992 में पद्मभूषण से सम्मानित किया! साल 1998 में वो अपने गानों की विरासत छोड़कर इस दुनिया को अलविदा कह गये।

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