ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान मूवी रिव्यू | दर्शकों को पूरी तरह ठगती हुई फिल्म

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ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान 200 करोड़ की विशुद्ध ठगी है। आमिर और अमिताभ ने तीन घंटे मिलकर ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान में बुरी तरह खखोर लिया। ठग्स ऑफ हिन्दोस्तान में कटरीना से कोई उम्मीद करना अपना सिर फोड़ना है। रोनित रॉय एक कायदे के आदमी थे, पहले ही निपट लिए।

फातिमा सना लगता है गलती से फिल्मों में आ गई हैं। एक बेचारा ज़ीशान अयूब कायदे का एक्टर था जिसे हीरो का दोस्त बनाकर निर्देशकों ने टाइप्ड कर डाला है, उस पर से मैनपुरी टाइप नेताजी की अबूझ बोली ने उसके साथ नाइंसाफी कर दी है।

ठीक है, खराब सिनेमा बनाना कोई खराब बात नहीं लेकिन एक बात समझ नहीं आती। अमिताभ बच्चन को आखिर किसने कह दिया है कि गले में खपच्ची फंसा कर बोलने से आवाज़ दमदार हो जाती है। एक तो महामानव जैसा कॉस्ट्यूम, ऊपर से घटिया आवाज़, एक डायलॉग साफ नहीं होता। आमिर जबरिया भोजपुरी अवधी के घालमेल में अलग ही लटपटाते दिखते हैं। पूरा सेट घटिया कार्टून से बेहतर नहीं है।

इसके बावजूद भारतीय जनता की सहिष्णुता देखिए कि उसने एकाध डायलॉग पर अपना राष्ट्रवाद दिखाते हुए ताली बजा ही दी। राष्ट्रवाद भी ऐसा कमजोर कि सीटी बजाते समय भूल गया कि डायलॉग बोलने वाला भी हिन्दू नहीं है और अंग्रेजों को सत्ता से हटा कर जिसका राज स्थापित किया जा रहा है वो भी! अफीम खाई हुई जनता ऐसी ही होती है। बिना सोचे आदतन ताली बजाती है गोया यही उसका काम हो।

इस फिल्म से यह तय हो गया है कि आमिर को अब सन्यास ले लेना चाहिए और बिग बी को पोता खिलाना चाहिए। कटरीना चाहें तो मनुष्य के रबड़ बनने की प्रक्रिया के वैज्ञानिक शोध में अहम योगदान दे सकती हैं। फिल्म का डायरेक्टर जो भी हो, उसे कमरे में बंद कर के दिन में पचास बार पायरेट्स ऑफ कैरीबियन दिखानी चाहिए।

ठग्स ऑफ हिन्दोस्तानअभिषेक श्रीवास्तव जी के फेसबुक वॉल के साभार। अभिषेक श्रीवास्तव जी वरिष्ठ पत्रकार हैं और विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय बगैर लाग लपेट के निष्पक्ष मानी जाती है।

 

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