रफ़ी साहब, जिनकी आवाज़ की गुलाम सदियां थीं और रहेंगी
रफी साहब के करियर को झटका लगा 1969 में जब ‘आराधना’ फ़िल्म रिलीज़ हुई। राजेश खन्ना की आभा ने पूरे भारत को चकाचौंध कर दिया और आरडी बर्मन ने बड़े संगीतकार बनने की तरफ़ अपना पहला बड़ा क़दम बढ़ाया।
इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया के पूर्व सह-संपादक राजू भारतन कहते हैं, “आराधना के सभी गाने पहले रफ़ी ही गाने वाले थे। अगर एसडी बर्मन बीमार नहीं पड़ते और आरडी बर्मन ने उनका काम नहीं संभाला होता तो किशोर कुमार सामने आते ही नहीं और वैसे भी ‘आराधना’ के पहले दो डुएट रफी साहब ने ही गाए थे।”
सत्तर के दशक की शुरुआत में संगीतकारों ने मोहम्मद रफ़ी का साथ छोड़ना शुरू कर दिया था, सिवाए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के। लक्ष्मीकांत तो अब रहे नहीं, लेकिन प्यारेलाल ज़रूर हैं जो कहते हैं कि उन्होंने रफ़ी का नहीं, बल्कि रफ़ी ने उनका साथ नहीं छोड़ा।
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